रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ।अजब निराली रेल चली छुक-छुक करती रेल चली ॥कभी आगे कभी पीछे कभी ऊपर कभी नीचे ।दौड़ रही है गली गली …रेल चली ॥ये गाड़ी है बड़ी निराली बड़ी तेज रफ्तार है ।नाम है जीवन एक्सप्रेस जिसमें दुनिया असवार है ।तरह तरह के डिब्बे जिसमें आगे पीछे खड़े हुऐ ॥सबका नाम देह अर तन है इक दूजे से जुड़े हुऐ ।आयु के इंजन से सांस के ईंधन से, ये दौड़ रही है गली गली ।रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ॥१॥सुख अर दुख की दो पटरी है जिस पर गाड़ी भाग रही ।एक सवारी नाम आत्मा इक डिब्बे से झांक रही ॥पहला स्टेशन बचपन है, नाम है सुंदर प्यारा ।खेल खिलौने जहां बिक रहे अजब तमासा न्यारा ॥देखे खेल खिलौने रे लगा मुसाफिर रोने रे ।इस रोने धोने में गाड़ी तेजी से फिर सटक चली ।रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ॥२॥अगला स्टेशन जो आया उसका नाम जवानी ।प्यास लगी पैसेंजर उतरा नीचे पीने पानी ॥एक अनोखा और यात्री प्लेटफार्म पर आया ।उसको भी अपने डिब्बे में फिर उसने बिठलाया ॥साथी में ऐसा खोया खेल खिलौने भूल गया ।इस जोड़े को लेके गाड़ी धीरे-धीरे सरक चली ।रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ॥३॥आगे को जरा और चली तो डिब्बे में एक शोर हआ ।इक नन्हा सा और यात्री दोनों के संग और चढ़ा ।तभी तीसरे स्टेशन का सिग्नल इन्हें नजर आया ।नाम बुढ़ापा है इसका कुछ उजड़ा उजड़ा सा पाया ॥गति ट्रेन की मंद हुई खिड़की सारी बंद हुई ।असमंजस में पड़ा मुसाफिर फिर भी गाड़ी सरक चली ।रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ॥४॥एक बड़ा जंक्शन आया तो यात्री ने बाहर झांका ।क्या देखा सब सुन लो भाई, था शमशान लिखा पाया ॥पहला यात्री बोला मुझको अब तो यहीं उतरना है ।ये वो स्टेशन है जहाँ गाड़ी मुझे बदलना है ॥साथी रोएँ खड़े-खड़े कौशिक मिस्टर उतर पड़े ।तन पिंजड़े को छोड़ आत्मा दूजी गाड़ी बैठ चली ।रेल चली भई रेल चली दो पहियों की रेल चली ॥५॥