nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

मानत क्यों नहिं रे हे नर
Karaoke :

मानत क्यों नहिं रे, हे नर सीख सयानी ॥टेक॥
भयौ अचेत मोह-मद पीके, अपनी सुधि बिसरानी ॥

दुखी अनादि कुबोध अब्रततैं, फिर तिनसौं रति ठानी ।
ज्ञानसुधा निजभाव न चाख्यौं, परपरनति मति सानी ॥१॥

भव असारता लखै न क्यौं जहँ, नृप ह्वै कृमि विट-थानी ।
सधन निधन नृप दास स्वजन रिपु, दुखिया हरिसे प्रानी ॥२॥

देह एह गद-गेह नेह इस, हैं बहु विपति निशानी ।
जड़ मलीन छिनछीन करमकृत-बन्धन शिवसुखहानी ॥३॥

चाहज्वलन इंर्धन-विधि-वन-घन, आकुलता कुलखानी ।
ज्ञान-सुधा-सर शोषन रवि ये, विषय अमित मृतुदानी ॥४॥

यौं लखि भव-तन-भोग विरचि करि, निजहित सुन जिनवानी ।
तज रुषराग दौल अब अवसर, यह जिनचन्द्र बखानी ॥५॥



अर्थ : हे मनुष्य ! तू विवेकपूर्ण उपदेश को क्यों नहीं मानता है ? मोहरूपी शराब को पीकर तू अपने आपको भूल गया, अचेत हो गया है।

तू मिथ्यात्वी होकर, मिथ्या आचरण कर इनमें रत हो रहा है और अपने ज्ञानस्वरूप को न जानकर/उसका आस्वादन न कर तू पर-परिणति में सना हुआ है, डूब रहा है, चिपक रहा है।

तू इस संसार की असारता को क्यों नहीं देखता जहाँ राजा भी भरकर अपने खराब भावों के कारण विष्ठा में कीड़ा होकर जन्मा। जहाँ धनी भी निर्धन हो जाता है, राजा दास हो जाता है, अपने पराए/शत्रु हो जाते हैं और दु:खी प्राणी भी हर्षित हो जाते हैं।

यह देह रोगों का घर है। तू इसमें नेह/अपनापन जोड रहा है । यह सब विपत्ति की निशानी है, कष्टप्रद है । यह पुद्गल देह मल से सना है, क्षण-क्षण में नष्ट होनेवाला है। कर्म करके कर्मबंधन में बंधता है जिससे आत्मीय सुख की प्रतीति/ अनुभव नहीं होता. उसकी हानि होती है।

इस कर्मरूपी घने जंगलों में इच्छाएँ जो कि आकुलतादायक हैं अर्थात् दुःख की खान हैं वे ही जलने योग्य ईंधन हैं / विवेक-ज्ञानरूपी सरोवर को सुखाने के लिए ये विषय ही अपरिमित, अथाह मृत्यु के दाता हैं अर्थात् ये विषय-सुख ही बार-बार मृत्यु के कारण हैं, संसार-भ्रमण के कारण हैं, बार-बार देह धारण करने के कारण हैं ।

यह सब देखकर तो तू इस संसार से, देह से, उसके भोगों से विरक्त होकर उनसे रुचि हटाकर अपना हित करनेवाली जिनेन्द्र की वाणी को, उपदेश को सुन ! दौलतराम कहते हैं कि श्रीजिनदेव बार-बार समझाते हैं कि अभी भी अवसर है तू राग-द्वेष को छोड़ दे।
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio

देव click to expand contents

शास्त्र click to expand contents

गुरु click to expand contents

कल्याणक click to expand contents

अध्यात्म click to expand contents

पं दौलतराम कृत click to expand contents

पं भागचंद कृत click to expand contents

पं द्यानतराय कृत click to expand contents

पं सौभाग्यमल कृत click to expand contents

पं भूधरदास कृत click to expand contents

पं बुधजन कृत click to expand contents

पर्व click to expand contents

चौबीस तीर्थंकर click to expand contents

दस धर्म click to expand contents

selected click to expand contents

नित्य पूजा click to expand contents

तीर्थंकर click to expand contents

पाठ click to expand contents

स्तोत्र click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

loading