और सब थोथी बातैं, भज ले श्रीभगवान ॥टेक॥प्रभु बिन पालक कोइ न तेरा, स्वारथमीत जहान ॥परवनिता जननी सम गिननी, परधन जान पखान ।इन अमलों परमेसुर राजी, भाषैं वेद पुरान ॥और सब थोथी बातैं, भज ले श्रीभगवान ॥१॥जिस उर अन्तर बसत निरंतर, नारी औगुन खान ।तहां कहां साहिबका बासा, दो खांडे इक म्यान ॥और सब थोथी बातैं, भज ले श्रीभगवान ॥२॥यह मत सतगुरु का उर धरना, करना कहिं न गुमान ।'भूधर' भजन न पलक विसरना, मरना मित्र निदान ॥और सब थोथी बातैं, भज ले श्रीभगवान ॥३॥
अर्थ : हे आत्मन् ! तू भगवान का भजन कर, इसके अतिरिक्त सारे क्रिया-कलाप, सारी बातें सारहीन हैं, निस्सार हैं। इस जगत में प्रभु के अलावा कोई भी तेरा अपना हितकारी मित्र, तेरा निर्वाह करनेवाला, पालनेवाला नहीं है ।
तू परस्त्री को अपनी माता के समान और पराग्ये धन को पाषाण के समान जान । काम और परिग्रह के त्याग के आचरण से परमात्मा की-सी चर्या होती है, ऐसा धर्मग्रन्थों, आगमों, पुराणों में कहा गया है। जिसके हृदय में निरन्तर कामवासना रहती है वह हृदय ही सब दुर्गुणों की खान है अर्थात् कामवासना अवगुणों की खान है। जिसके हृदय में कामवासना रहती है, उसके हृदय में प्रभु का स्मरण नहीं होता। प्रभु की आराधना और कामवासना ये दोनों एकसाथ एक स्थान पर नहीं रह सकते जैसे कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह पातीं।
श्री सत्गुरु का यह उपदेश अपने हृदय में धारण कर और उसका कहीं भी, कभी भी अभिमान मत करना। भूधरदास कहते हैं कि मृत्यु तो एक दिन अवश्य आयेगी हो, तू एक पल के लिए भी प्रभु के स्मरण-भजन से च्युत न होना अर्थात् प्रभु विस्मरण मत करना।