भाई! ज्ञानी सोई कहिये ॥टेक॥करम उदय सुख दुख भोगेतैं, राग विरोध न लहिये ॥कोई ज्ञान क्रियातैं कोऊ, शिवमारग बतलावै ।नय निहचै विवहार साधिकै, दोऊ चित्त रिझावै ॥भाई! ज्ञानी सोई कहिये ॥१॥कोई कहै जीव छिनभंगुर, कोई नित्य बखाने ।परजय दरवित नय परमानै, दोऊ समता आनै ॥भाई! ज्ञानी सोई कहिये ॥२॥कोई कहै उदय है सोई, कोई उद्यम बोले ।'द्यानत' स्यादवाद सुतुला में, दोनों वस्तैं तोलै ॥भाई! ज्ञानी सोई कहिये ॥३॥
अर्थ : अरे भाई ! ज्ञानी उसे ही कहते हैं जो कर्मोदय के कारण होनेवाले सुख-दुःख को समता से अर्थात् बिना राग-द्वेष के सहन करता है ।
कोई ज्ञानार्जन के द्वारा, कोई क्रिया के द्वारा मोक्ष-मार्ग बतलाता है पर जो निश्चय और व्यवहारनय के अभ्यास से निश्चय और व्यवहार दोनों ही दृष्टि से चित्त में प्रसन्न रहता है वही ज्ञानी है ।
कोई व्यवहार से जीव को क्षणभंगुर कहता है तो कोई निश्चय से उसे नित्य कहता है । पर जो पर्याय और द्रव्य दोनों को नय प्रमाण से जानकर समता धारण करता है वही ज्ञानी है ।
कोई कर्माधीन उदय को प्रमुख मानता है तो कोई पुरुषार्थ को प्रमुख मानता है । द्यानतराय कहते हैं कि जो स्याद्वादरूपी तराजू में दोनों को तोलता है वही ज्ञानी है ।