मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥टेक॥मात तात रज वीरज सों यह उपजी मल फुलवारी ।
१अस्थिमाल
२पल नसा जाल की
३लाल लाल जल क्यारी ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥१॥करम
४कुरंग थली पुतली यह मूत्र
५पुरीष भंडारी ।चर्म मडी रिपु कर्म घड़ी धन धर्म चुरावन हारी ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥२॥जे जे पावन वस्तु जगत में ते इन सर्व
६विगारी ।
७स्वेद मेद कफ क्लेदमयी बहु, मद
८गद व्यालि पिटारी ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥३॥जा संयोग रोग अब तौलों, जो वियोग शिवकारी ।बुध तासों न ममत्व करें यह, मूढ़ मतिन को प्यारी ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥४॥जिन
९पोसी ते भये
१०सदोषी, तिन पाये दुख भारी ।जिन तप ठान ध्यान कर खोजी, तिन
११परनी शिवनारी ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥५॥
१२सुरधनु
१३शरद
१४जलद जल बुदबुद त्यों झट विनशनहारी ।यारौं भिन्न जान निज चेतन, दौल होहु शमधारी मत ॥मत कीज्यो जी यारी, घिन गेह देह जड़ जान के ॥६॥
१अस्थियाँ, २मांस, ३खून, ४हिरण, ५मल, ६बिगाड़ा, ७पसीना, ८रोग, ९पुष्ट किया, १०अपराधी, ११परिणय किया, १२इंद्रधनुष, १३पतझड़, १४बादल
अर्थ : हे भाइयों ! इस शरीर से अनुराग मत करो, अपितु इसे घिनावना (अशुचि) और अचेतन समझो।
यह शरीर माता-पिता के रज-वीर्य से उत्पन्न हुई एक ऐसी गन्दी फुलवारी है, जिसमें लाल-लाल पानी से भरी हुई हड्डी, मांस, नस आदि की क्यारियाँ हैं।
यह शरीर कर्म की अशुभ रंगस्थली पर नाचनेवाली एक ऐसी पुतली है जो मल एवं मूत्र का भण्डार है। यह चर्म से ढकी हुई है, कर्मशत्रु द्वारा निर्मित है और धर्मरूपी धन को चुरानेवाली है।
जगत में जितनी भी पवित्र वस्तुएँ है, उन सबको यह शरीर गन्दा कर देता है। यह शरीर पसीना, चरबी, कफ और मवाद स्वरूपी है तथा भयंकर रोगरूपी सर्पों का पिटारा है।
जब तक इसका संयोग है, तभी तक संसार-रोग रहता है। इसका वियोग तो मोक्ष प्रदान करनेवाला है। अतः ज्ञानी जीव इस शरीर से ममत्व नही करते। यह तो केवल अज्ञानियों को ही प्यारा लगता है।
आज तक जिन जीवों ने इस शरीर का पोषण किया है वे ही दोषी बने हैं और उन्होंने ही घोर दुःख प्राप्त किया है। इसके विपरीत, जिन जीवों ने तप, ध्यान आदि के द्वारा इसका शोषण किया है, उन्होंने मुक्ति-स्त्री को प्राप्त कर लिया है।
कविवर दौलतराम कहते हैं कि हे भाइयो ! यह शरीर इन्द्रधनुष, शीतकाल के मेघ और पानी के बुलबुले की भॉति शीघ्र नष्ट हो जानेवाला है; अतः अपने आपको इस शरीर से भिन्न पहचानो और शान्तभाव के धारक हो जाओ।