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श्री
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अपने घर को देख बावरे
Karaoke :
तर्ज :- जिसने राग द्वेष कामादिक
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
फूल तुम्हें भेजा है खत में
प्यार में होता है क्या जादू

अपने घर को देख बावरे, सुख का जहां खजाना रे,
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥टेक॥

ये माटी के खेल खिलौने, माटी तन की रानी है,
माटी का तन, माटी का मन, माटी की राजधानी है,
माटी के पुतले तेरा तो माटी-भरा बिछौना रे ॥
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥१॥

पर परणति परभाव निरखता, आत्‍मतत्त्व को भूला रे,
परभावों में सुख दु:ख माने, झूल रहा भव झूला रे,
सहजानन्‍दी रूप तुम्‍हारा, जग सारा वेगाना रे ॥
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥२॥

चिंतामणि सा नरभव पाया, कल्‍पवृक्ष सा जिनवृष रे,
गवां रहा है रत्‍न अमोलक, क्‍यों विषयों में फंस-फंस रे,
बिखर जायेगा इक दिन तेरा, सारा ताना-बाना रे ॥
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥३॥

घूम लिये हो चारों गति में, अब तो निज का ध्‍यान करो,
विषय हलाहल बहुत पिया है, अब समता रस पान करो,
अपने गुण की छांह बैठ जा, बहुत दूर नहीं जाना रे
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥४॥

त्रस, स्‍थावर पर्याय बदलता, पिये मोह की हाला रे,
कभी स्‍वर्ग के आंगन देखे, कभी नरक की ज्‍वाला रे,
चौरासी के 'पथिक' तुम्‍हारा, शिवपुर दूर ठिकाना रे
अपने घर को देख बावरे, सुख का जहां खजाना रे,
क्‍यों पर में सुख खोज रहा है, क्‍यों बनता दीवाना रे ॥५॥

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