१सुधि लीज्यो जी
२म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥टेक॥तीनलोक स्वामी नामी तुम, त्रिभुवन के दुखहारी ।गणधरादि तुम शरण
३लइ
४लख, लीनी शरण
५तिहारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥१॥जो
६विधि अरी करी हमरी गति, सो तुम जानत सारी ।याद किये दुख होत हिये ज्यों, लागत
७कोट कटारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥२॥लब्धि अपर्याप्त निगोद में एक
८उसांस मंहारी ।जनम मरन
९नव दुगुन विथा की, कथा
१०न जात उचारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥३॥
११भू जल
१२ज्वलन पवन प्रत्येक, विकलत्रय तनधारी ।पंचेन्द्री पशु नारक नर सुर, विपति भरी भयकारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥४॥मोह महारिपु नेक न सुखभय,
१३होन दई सुधि थारी ।सो
१४दुठि बंध भयौ
१५भागनतै, पाये तुम जगतारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥५॥यदपि विराग तदपि तुम शिवमग, सहज प्रगट करतारी ।ज्यों रवि किरण सहज मग दर्शक, यह निमित्त अनिवारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥६॥
१६नाग
१७छाग
१८गज बाघ भी दुष्ट, तारे अधम उधारी ।शीश नमाय पुकारत कब कैं 'दौल' अधम की बारी ॥सुधि लीज्यो जी म्हारी, मोहि भवदुख दुखिया जानके ॥७॥
१खबर २मेरी ३शरण ली है ४बहार ५आपकी ६कर्म शत्रु ७करोड़ो कटारी ८एक सांस में ९अट्ठारह बार मरना जीना १०कही नही जाती ११पृथ्वी १२आग १३आपका स्मरण होने दिया १४दुष्ट १५सौभाग्य से १६सर्प १७बकरा बकरी १८हाथी
अर्थ : हे प्रभो ! मैं ससार-दुःख से बहुत दुःखी हूँ। कृपया मेरी सुधि लीजिए ।
हे प्रभो ! आप तीन लोक के स्वामी के रूप में प्रसिद्ध है, तीन लोक के दु.ख दूर करनेवाले हैं और गणधर आदि ने भी आपकी शरण ली है - यही देखकर मैंने आपकी शरण ली है।
हे प्रभो ! कर्मरूपी शत्रुओं ने हमारी जो हालत की है, उसे आप अच्छी तरह जानते हैं। मैं तो उस याद भी करता हूँ तो ऐसा दुःख होता है मानो हृदय में करोड़ों कटार लग गयी हों ।
हे प्रभो ! मैंने लब्धि-अपर्याप्त दशा में निगोद में एक श्वास में अठारह बार जन्म-मरण करके जो अनन्त दुःख भोगा है, उसकी कहानी वचनों से कही नहीं जा सकती है।
इसके बाद मैने पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और प्रत्येक-वनस्पतिकायिक शरीरों को धारण किया। इसके बाद मैं दो-इन्द्रिय, तीन-इन्द्रिय, चार-इन्द्रिय जीव हुआ और फिर पंचेन्द्रिय पशु, नारकी, मनुष्य और देव हुआ। हे प्रभो ! मैने इन सब दशाओं में भयंकर दुःख सहन किये हैं।
हे प्रभो ! मोहरूपी महाशत्रु ने मुझे आपकी सुखमयी याद रंचमात्र भी कभी नहीं होने दी थी, किन्तु अब बड़े भाग्य से वह दुष्ट मन्द हुआ है, इसलिए मुझे आपका समामम प्राप्त हुआ है।
हे प्रभो ! यद्यपि आप वीतरागी है, तथापि आप सहज ही मोक्षमार्ग को प्रकट करनेवाले हैं; उसी प्रकार, जिस प्रकार कि सूर्य की किरणे सहज ही मार्गदर्शक (रास्ता दिखानेवाली) होती है। आप भी ऐसे ही सहज अनिवार्य निमित्त हैं।
कविवर दौलतराम कहते हैं कि हे प्रभो ! अब तक आपने साँप, बकरी, हाथी, बाघ, भील आदि अनेक दुष्ट जीवों का उद्धार किया है; किन्तु अब मैं शीश झुकाकर आपको पुकारता हूँ कि अब मेरी बारी है।